एक बलात्कारी देश में स्त्रियों के हाथ
जब भी लिखने बैठता हूँ
एक स्त्री खून में सनी हुई
दिखाई देती है
रिपोर्ट कहती है वह डूबकर
मरने वाली कोई एक स्त्री नहीं
अखबार के पोस्टर पर छपी हुई
श्रृंखलाएं हैं
सब ओर खून से सने हुए कपड़े दिखाई
दे रहे हैं
घर, दीवार, सड़क, सब ओर खून ही
खून
दीवारों का खून माथे पर दिखाई
नहीं देता
बलात्कृत स्त्रिओं तुम्हारे
लिए कैंडल मार्च निकालने वाले लोग कौन हैं
वास्तव में वे कैंडल के व्यापारी
हैं
हर बलात्कार के बाद उन्हें चमकाना
है अपना व्यापार
अतः वे भी पांच मिनट शांतिमार्च
में शामिल हो
अखबार में भेज रहे हैं फोटो,
टीवी पर रो रहे हैं
क्या आपको पता है भंवरी नाच
रही है
भंवरी का न्यायालय
बलात्कारियों की बाट जोह रहा है
वहाँ जज भी भंवरी की तलाश में
है, यौनसुख
भंवरी का नाचना सब को पता है,
पर भंवरी न्यायालय से गायब
पता नहीं कितनी स्त्रियाँ कोलेजियम
के भीतर बर्बाद हो गईं
बिलकिस बानो तुम गुजरात के सबसे
समृद्ध नुक्कड़ पर झुकी खड़ी हो
तुम्हारी छाती पर सबकी नजर
है
लोग तुम्हारी मिट्टी खोद रहे
हैं जिसका खून समय से भी गाढ़ा हो गया है
तुम चुपचाप देख रही हो, प्रतिरोध
का साहस खो रहा है
तुम हारी नहीं हो, चमक रही हो
हर उस माथे पर
जो बलात्कृत स्त्रियों के बाप
हैं
निलोफर, आशिया, तुम्हारा
बलात्कार थोड़े ही हुआ
तुम्हारी तो सेना ने बस तलाशी
ली
कहा गया तुम डूबकर मरने
वाली चरित्रहीन स्त्रियाँ थीं
स्त्री है तो चरित्रहीन का ठप्पा
पहले
फिर बलात्कारियों के हाथ में
तहकीकात
पत्थरों को भगवान् कहने वाले
देवता
मनुष्य की ऊँची योनि बताने वाले
ब्राह्मण अब चुप हैं
सोनी सोरी तुम्हारे भीतर यदि
पत्थर डाला जा सकता है, यौनसुख
तुम पत्थर खा सकती हो, तो पत्थर
पैदा भी हो सकता है
भारत निर्माण के इस दौर में
जब तुम्हारे ही खून से लिखा
जा रहा है हमारा इतिहास
तुम सबके सामने ऐसे ही खड़ी हो
जैसे तुम बुरे वक्त में खड़ी रहीं, बदहवास
हम बेटियों को बता नहीं सकेंगे
तुम्हारा इतिहास
देश के कोने कोने से आई हुई
स्त्रियों
तुम्हारा सखीपन कितना दर्दीला
है
सोनी, दामिनी, ईरोम, नीलोफरजान,
आशिया, बिलकिस
मीना क्याल्सो, सुरेखा भोतमंगे,
लक्ष्मी औरंग, मनोरमा थानजंग
प्रियंका, तापसी, जेसिका,
डेजी, अनामिका पांडे
तापसी मल्लिक, रूमी कुंवर,
पुतुल बोरा, अनोला, नीरू गोगोई
रीना, यमुना, पुन्या, भानी माई
दत्ता, मुबीना अख्तर
तुमने कभी नहीं निकाला शांतिमार्च
तुमने प्रतिरोध भी किया तो कैसा?
तुम्हारी आवाजे तुम्हारे भाइयों
के लिए आज भी मोहक हैं
तुम्हारे आँखों में आंसू पिता
देख नहीं पाते
तुम आज भी माँ की दुलारी बिटिया
हो
वे डर रहे हैं तुम सड़कों पर
निकल रही हो
वे डर रहे हैं तुम तख्तियां
उठाये संसद जा रही हो
वे डर रहे हैं कमजोर और मजलूम
हाथों ने पत्थर उठा लिया है
ये जो तुम्हारे हाथों में मशाल
है बुझ नहीं सकती
घरों में बैठे हुए भेड़िये
डर गए हैं
उन्हें पता है तुम श्मशान का
कोयला बटोर कर लायी हो
उन आखों के लिए जो तुम्हें घूरेंगे
आज तुम्हारे उन हाथो से
देश जहाँ न्याय बिकता है,
बलात्कारी देश में
कानून के कंधे को पकड़कर चौराहे
पर खड़ा कर देना होगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें